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कविता

साझेदारी

अभिज्ञात


ताख पर रखी हुई चाभी
बार-बार उकसाती है
कहीं चलूँ
और ताले को जरा देर सोचने दूँ अपने घर के बारे में
इतमीनान से

करके उसी के हवाले

बुरा नहीं है घर की चिंताओं में
शामिल कर लेना ताले को
दरवाजे, खिड़की, अलगनी, आलमारी को भी
मय साजो-सामान

घर
जहाँ कई-कई लोग
छोटी-मोटी चीजों की चिंता में
रहते हैं शामिल

कितना सुकूनदायक होता है चिंताओं का बँट जाना

बँट जाने से कम हो जाता है बोझ
जैसे बँट गई हों डाकिए की चिट्ठियाँ।


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